डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
भारत के महान दार्शनिक, शिक्षक और विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) का नाम भारतीय शिक्षा और दर्शन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उन्हें एक आदर्श शिक्षक, प्रखर विद्वान, उच्च कोटि के दार्शनिक और भारत के द्वितीय राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है। आइए उनके जीवन और योगदान के बारे में विस्तार से जानते हैं:
जीवन परिचय:-
पूरा नाम: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जन्म: 5 सितम्बर 1888, तिरुत्तनी (तमिलनाडु)
मृत्यु: 17 अप्रैल 1975, मद्रास (अब चेन्नई)
माता-पिता: पिता – सर्वपल्ली वीरस्वामी, माता – सीतम्मा
पेशा: शिक्षक, दार्शनिक, लेखक, राजनीतिज्ञ
शिक्षा:-
प्रारंभिक शिक्षा तिरुत्तनी और तिरुपति में हुई।
उच्च शिक्षा मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पूरी की।
दर्शनशास्त्र (Philosophy) में विशेष रुचि के कारण उन्होंने पश्चिमी और भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन किया।
एम.ए. में दर्शनशास्त्र में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
शैक्षणिक जीवन
उन्होंने अध्यापन कार्य की शुरुआत मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज से की।
मैसूर यूनिवर्सिटी, कलकत्ता यूनिवर्सिटी, आंध्र यूनिवर्सिटी और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (इंग्लैंड) में प्रोफेसर और कुलपति के रूप में सेवा दी।
वे भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया में स्थापित करने वाले पहले विद्वानों में से एक थे।
उनका मानना था कि “शिक्षक का स्थान समाज में सबसे ऊँचा होना चाहिए।”
राजनीतिक जीवन
स्वतंत्रता के बाद 1947 से 1952 तक वे सोवियत संघ (USSR) में भारत के पहले राजदूत बने।
1952 में वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति चुने गए और लगातार दो बार इस पद पर रहे।
1962 में वे भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने और 1967 तक इस पद पर कार्य किया।
दर्शन और विचार
राधाकृष्णन जी भारतीय दर्शन, विशेषकर वेदांत दर्शन और उपनिषदों के गहरे ज्ञाता थे।
उन्होंने भारतीय अध्यात्म और पाश्चात्य विज्ञान व दर्शन के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया।
उनका मानना था कि धर्म और दर्शन का उद्देश्य मानवता की सेवा करना है।
वे “अद्वैत वेदांत” के समर्थक थे और जीवन को नैतिकता, करुणा और ज्ञान से परिपूर्ण मानते थे।
प्रमुख ग्रंथ और रचनाएँ
डॉ. राधाकृष्णन ने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं जिनसे भारतीय दर्शन को विश्वभर में नई पहचान मिली।
The Philosophy of Rabindranath Tagore
Indian Philosophy (दो खंडों में)
The Hindu View of Life
Religion and Society
An Idealist View of Life
सम्मान और पुरस्कार
1931 में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नाइटहुड की उपाधि दी गई।
1954 में भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया।
ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, और कई अन्य विश्व विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट उपाधियाँ दीं।
शिक्षक दिवस का आरंभ
जब वे राष्ट्रपति बने, उनके शिष्यों और मित्रों ने 5 सितम्बर को उनका जन्मदिन मनाने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा –
“अगर मेरा जन्मदिन मनाना चाहते हो, तो इसे ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाओ।”
तभी से भारत में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन केवल एक शिक्षक नहीं थे, बल्कि ज्ञान और शिक्षा के प्रतीक थे। उनका जीवन दर्शाता है कि शिक्षा केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज निर्माण का सबसे सशक्त माध्यम है। उनकी शिक्षाएँ आज भी हर विद्यार्थी, शिक्षक और नागरिक को प्रेरित करती हैं।